DUSSERA


तीन दिवस तक पंथ मांगते रघुपति सिंधु किनारे, बैठे पढते रहे छन्द अनुनय के प्यारे प्यारे । उत्तर में जब एक नाद भी उठा नही सागर से, उठी अधीर धधक पौरुष की आग राम के शर से । सच पूछो तो शर में ही बसती है दीप्ति विनय की, संधिवचन सम्पूज्य उसी का जिसमे शक्ति विजय की। In the name of this auspicious Vijayadashami let’s evoke the Devine mother in our hearts to kill the Mahisasuras working on our minds .



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